
शुभमन गिल: 21वीं सदी का ‘एक्सीडेंटल कप्तान’, भारतीय क्रिकेट का संयोग या रणनीतिक भूल?
नई दिल्ली: भारतीय क्रिकेट के इतिहास में ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की तरह अब ‘एक्सीडेंटल कप्तान’ की संज्ञा से एक नाम जुड़ गया है—शुभमन गिल। जिनके पास न तो अभी नेतृत्व का अनुभव है, न ही ऐसी ठोस उपलब्धियाँ जो उन्हें स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता बनाती हों। फिर भी वर्तमान परिस्थितियों ने उन्हें टीम इंडिया की कप्तानी की ज़िम्मेदारी सौंप दी है।
गिल का कप्तान बनना एक नियति की विडंबना है—सही समय पर ग़लत आदमी का सही जगह पर होना। क्योंकि इस समय भारतीय क्रिकेट के ‘सही लोग’ ग़लत जगहों पर हैं—कोई सेवानिवृत्त, कोई चोटिल, और कोई चयन नीति के भंवर में उलझा हुआ।
प्रदर्शन का आईना: औसत और अवसर
टेस्ट क्रिकेट में गिल का औसत 35.05 (32 मैचों में) है, जो पिछले एक दशक में भारत के टॉप ऑर्डर बल्लेबाज़ों में सबसे कम है। तुलना करें तो चेतेश्वर पुजारा, विराट कोहली, ऋषभ पंत ही नहीं, बल्कि अजिंक्य रहाणे और सीमित अवसर पाने वाले हनुमा विहारी का औसत भी उनसे बेहतर है।
विदेशी परिस्थितियों, विशेष रूप से SENA (दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया) देशों में, गिल की असफलताएं और भी स्पष्ट हो जाती हैं। उनका औसत 25.70 है—जो पूर्व ऑलराउंडर मनोज प्रभाकर (24.2) से थोड़ा ही बेहतर है। इंग्लैंड में उनके टेस्ट स्कोर—28, 15, 1, 0, 17, 4—किसी भी भरोसेमंद बल्लेबाज़ की तस्वीर पेश नहीं करते।
तकनीकी कमज़ोरियाँ और बल्लेबाज़ी क्रम में गिरावट
शुभमन की बल्लेबाज़ी में एक बड़ा दोष है—स्विंग होती गेंदों के खिलाफ असहायता। आउटस्विंगरों के खिलाफ उनके ‘हार्ड हैंड्स’ और शुरुआती ओवरों में नर्वसनेस के कारण वह कई बार विकेट के पीछे या स्लिप में कैच दे चुके हैं। इन तकनीकी खामियों के चलते उन्होंने ओपनिंग का स्थान पहले ही गंवा दिया है, और अब उनकी बल्लेबाज़ी क्रम में स्थिति अस्थिर होती जा रही है।

नेतृत्व का दबाव और टीम पर असर
गिल पर न सिर्फ़ कप्तानी का दबाव है, बल्कि टीम में अपनी जगह बनाए रखने की चुनौती भी है। ऐसे समय में जब टीम युवा और अनुभवहीन चेहरों से भरी हो, कप्तान का अस्थिर होना पूरी टीम को डगमग कर सकता है। क्रिकेट में अक्सर कहा जाता है—”डूबता कप्तान अपनी नाव भी डुबो देता है।” ऐसे में गिल की कप्तानी टीम इंडिया के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।
विकल्प थे, पर चुना गया भ्रम
कई विशेषज्ञों का मानना है कि जसप्रीत बुमराह को कप्तानी सौंपना और ऋषभ पंत या केएल राहुल को उपकप्तान बनाना अधिक तर्कसंगत होता। लेकिन लगता है BCCI ने गिल के आईपीएल प्रदर्शन से प्रभावित होकर यह निर्णय लिया—जो एक भ्रम साबित हो सकता है।
टीम ट्रांज़िशन में, चयन की पहेली में उलझी
राहुल द्रविड़ की विदाई और गौतम गंभीर की नई भूमिका के साथ टीम इंडिया एक बड़े बदलाव से गुजर रही है। रोहित शर्मा और विराट कोहली के अचानक हटने, रविचंद्रन अश्विन के बीच सीरीज़ रिटायरमेंट और कोचिंग स्टाफ के बदलावों ने अस्थिरता और बढ़ा दी है। हार्दिक पंड्या भी अब योजनाओं से बाहर दिख रहे हैं।
क्या गौतम गंभीर भारतीय क्रिकेट को अपनी शैली में ढाल रहे हैं, या वाकई देश के लिए सर्वश्रेष्ठ टीम तैयार कर रहे हैं? यह प्रश्न मौजूदा चयन नीतियों को लेकर गंभीर चर्चा की मांग करता है।
इतिहास दोहराने की आहट?
शुभमन गिल की कप्तानी की स्थिति 1980 के दशक के उत्तरार्ध की याद दिलाती है, जब सुनील गावस्कर के बाद कप्तानी को लेकर अस्थिरता थी। तब के श्रीकांत की तरह ही, गिल का नेतृत्व भी भारतीय क्रिकेट को एक लम्बे ‘संक्रमण काल’ में धकेल सकता है—यदि उन्होंने अपेक्षाओं को धता न बताया।